
ब्रह्मांड के विशाल आकाश में जब पहली तरंग उठी, तब न समय था और न दिशा। केवल एक सूक्ष्म स्पंदन था, जो किसी अनाम शून्य की गोद से प्रकट हुआ। वही स्पंदन आगे चलकर ब्रह्मांड बना, वही हमारी देह, विचार और स्वप्नों का आधार बना। ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने अपनी मौन श्वास को छिपाकर अनेक रूपों में बिखेर दिया हो।
बौद्ध परंपरा कहती है कि समस्त अस्तित्व शून्य की कोमल मिट्टी से निर्मित है। यह शून्यता रिक्तता नहीं है, बल्कि वह संभाव्यता है जिसमें सब कुछ उत्पन्न होने को तैयार रहता है। जब कोई साधक अपनी चेतना को शांत करता है, तब उसे अहसास होता है कि हर वस्तु अपनी सीमा खोकर किसी अदृश्य निरंतरता में विलीन हो रही है।
यही अनुभूति आधुनिक भौतिकी भी अपने ढंग से व्यक्त करती है। क्वांटम कणों की दुनिया में कोई वस्तु स्थिर नहीं रहती। कण तरंग बन जाता है। तरंग कण में लौट आती है। ज्ञात और अज्ञात अपने बीच एक सूक्ष्म नृत्य रचते हैं। जो हमें ठोस दिखाई देता है, वह असंख्य अनिश्चितताओं का गुच्छा है। वहां नियम भी निश्चित नहीं, परिणाम भी स्थायी नहीं। सब कुछ एक चलायमान शून्य-सागर में तैरता हुआ प्रतीत होता है।
और जब वैज्ञानिक ग्यारह आयामों की बात करते हैं, तो ऐसा लगता है कि वे किसी प्राचीन ऋषि की ही अनुभूति को भाषा दे रहे हैं। इन आयामों में फैला ब्रह्मांड केवल दृश्य नहीं, अदृश्य तहों से युक्त है। हमारी दुनिया तो केवल एक पर्दा है, जिसके पीछे अनगिनत परतें अपनी अलग लय में कंपन करती रहती हैं। शायद हर आयाम शून्यता के किसी अलग रूप का विस्तार है। कहीं समय मुड़ता है, कहीं स्थान फैलता है, कहीं दोनों एक साथ मिटते हुए प्रतीत होते हैं।
मनुष्य जब इस व्यापकता को समझने की कोशिश करता है, तब उसका अहं क्षीण होने लगता है। उसे महसूस होता है कि वह अकेला नहीं, बल्कि किसी अनंत रचना का सूक्ष्म कण है। उसका दुख, उसकी इच्छाएँ, उसकी सीमाएँ, सब कुछ इस विराट प्रवाह में घुलते चले जाते हैं। जैसे नदी समुद्र में समा जाती है, वैसे ही मन अपने छोटेपन को छोड़कर किसी असीम शांति की ओर बढ़ता है।
शायद यही वह क्षण है जब विज्ञान और साधना एक साथ झुकते हैं। दोनों मान लेते हैं कि सत्य को पकड़ना संभव नहीं। केवल उसके साथ चलना सीखा जा सकता है। शून्यता को शत्रु नहीं, साथी माना जा सकता है। जीवन की हर लहर को उसी मौन आधार में लौट जाना है, जहां से वह आई थी।
यदि हम इस रहस्य को समझ सकें, तो हमारा मन हल्का हो जाएगा। हम न अतीत में कैद रहेंगे और न भविष्य के बोझ से दबेंगे। हम केवल वर्तमान की उस एक बूँद में जीना सीखेंगे, जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड की प्रतिध्वनि छिपी है। शायद यही शांति की ओर पहला कदम है।



