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लेखपाल जी दाखिल कराना है… “ठीक है, हो जाएगा, 11 हजार रूपए खर्चा और बैनामा की नकल दे देना…”

रंगे हाथ पकड़े जाने के मामले सामने आने के बावजूद रिश्वत लेने से बाज नहीं आ रहे बिजनौर जनपद के लेखपाल

  • नजीबाबाद के लेखपाल ने किरतपुर के टुकापुरी में खरीदी गई जमीन का दाखिल खारिज पर मांगे 11 हजार रूपए
  • मोल-तोल के बाद 6500 रूपए लेकर राजी हुए लेखपाल, मामला राष्ट्रीय पंचायत तक पहुंचा तो लौटा दी रिश्वत

नजीबाबाद, संवाददाता राष्ट्रीय पंचायत।
उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद में रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़े गए कई लेखपालों के मामले सुर्खियों में आने के बावजूद लेखपाल रिश्वतखोरी से बाज नहीं आ रहे हैं। जमीन की पैमाइश, आख्या अथवा रिपोर्ट लगवाने के नाम पर रिश्वत लेने तो आम बात है। लेकिन, किसी खेती योग्य जमीन, प्लॉट आदि का दाखिल खारिज कराने में कई लेखपालों द्वारा खुलेआम रिश्वत मांगी जा रही है। और, रिश्वत हजार या दो हजार रूपए नहीं, बल्कि बैनामा कराई संपति की सर्किल रेट के हिसाब से कुछ कीमत की पूरी दो प्रतिशत धनराशि की बतौर रिश्वत लेखपालों द्वारा डिमांड की जा रही है।

कितने की है ? जी करीब 5.50 लाख रूपए की। ठीक है, 11 हजार रूपए खर्चें के दे देना।

वैसे तो पिछले करीब दो-ढाई साल में लेखपालों द्वारा रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े जाने के कई मामले प्रकाश में आ चुके हैं। नजीबाबाद और बिजनौर तहसील में भी कई लेखपाल रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने पर जेल जा चुके हैं। और, कई लेखपाल ट्रांसफर और निलंबन की कार्यवाही झेल चुके हैं। बावजूद इसके लेखपालों में रिश्वतोखोरी की जड़ कमजोर नहीं हुई है। हाल ही में नजीबाबाद तहसील में एक लेखपाल द्वारा दाखिल खारिज के नाम पर रिश्वत मांगी गई। दाखिल खारिज कराने गए किरतपुर क्षेत्र के गांव ठुकापुरी निवासी युवक ने हाल ही में खरीदी गई अपनी दो बीघा जमीन का दाखिल खारिज कराने के लिए किरतपुर परगना क्षेत्र में काम करने वाले एक लेखपाल से संपर्क किया। नजीबाबाद तहसील परिसर स्थित पुराना कोषागार बिल्डिंग में बैठने के लिए बनाए लेखपाल के कक्ष में पहुंचे इस युवक ने जब हल्का लेखपाल से दाखिल खारिज कराने के लिए बात की। तो, लेखपाल ने सवाल किया, कितनी जमीन खरीदी है, युवक ने जवाब दिया साहब दो बीघा। कितने की है ? जी करीब 5.50 लाख रूपए की। तब लेखपाल का जवाब होता, ठीक है, दाखिल खारिज हो जाएगा। बस, आप बैनामा की नकल और 11 हजार रूपए खर्चें के दे देना। यह सुनकर युवक ने अपने किसी रिश्तेदार मीडियाकर्मी को फोन किया, इत्तेफाक से फोन पर बात नहीं हो सकी। फिर, युवक ने लेखपाल की मान-मनोव्वल करते हुए लेखपाल को साढ़े छह हजार रूपए में राजी करते हुए खर्चे के साढ़े छह हजार रूपए लेखपाल को दे दिए।

युवक ने रिश्तेदार मीडिया कर्मी को बताई कहानी

शाम को युवक के रिश्तेदार मीडिया कर्मी ने युवक को फोन किया तो उसने यह सारी कहानी बता दी। इसके बाद रिश्तेदार मीडियाकर्मी ने अपने कार्यालय से एक साथी को इस बात की पुष्टि करने के लिए सोमवार, 25 अगस्त 2025 को उसी लेखपाल के पास नजीबाबाद तहसील परिसर भेजा। मीडियाकर्मी ने आम किसान बनकर दाखिल खारिज कराने के लिए उसी लेखपाल से बात की, तो उसी लेखपाल ने फिर वहीं सवाल दोहराए। कितनी जमीन खरीदी है ? कितने में खरीदी हैं ? और, फिर दाखिल खारिज हो जाएगा कहते हुए 11 हजार रूपए का खर्चा और बैनामा की नकल देने के लिए कहा। फिर कहा कि चलो, बस खर्चा ही देना, बैनामा के नकल, फर्द आदि दस्तावेज में खुद निकालवा लूंगा, आप क्या परेशान होंगे ? और खर्चा एवं बैनामा की नकल देने के लिए शाम को बिजनौर में ही समय और स्थान तय हो गया। क्योंकि, लेखपाल बिजनौर ही रहते हैं, और यही से रोजाना नजीबाबाद आना-जाना करते हैं।

लेखपाल से मीडियाकर्मी की मुलाकात

बिजनौर में जब शाम को ही बैनामा और खर्चा देने के लिए लेखपाल से मीडियाकर्मी की मुलाकात हुई, और रिश्वतखोरी की पुष्टि करने हेतु नजीबाबाद में किसान बनकर मुलाकात करने की जानकारी दी गई, तो लेखपाल की बेचैनी बढ़ गई। कुछ देर तक इधर-उधर की बातें होने के बाद लेखपाल ने अगली सुबह 26 अगस्त 2025 की सुबह करीब 08ः00 बजे कॉल करते हुए कार्यालय में मिलने और अपनी बात रखने के लिए अगले दिन का समय मांगा। उसके बाद लेखपाल न तो अपना कोई पक्ष रखने आए, और न ही उन्होंने कोई कॉल की। लेकिन, इस गतिविधि का असर यह हुआ कि, लेखपाल ने दाखिल खारिज के नाम पर ली गई 6500 रूपए की धनराशि उस युवक को लौटा दी।

इस घटनाक्रम से यह तो स्पष्ट है कि युवक का रिश्तेदार मीडियाकर्मी होने की वजह से लेखपाल ने उसकी रकम तो लौटा दी, लेकिन क्या सभी आम जनमानस के रिश्तेदार मीडियाकर्मी है ?, नेता हैं ? अथवा कोई पहुंच एवं रसूखवाले शख्स हैं ? शायद नहीं। फिर तो लेखपालों द्वारा ऐसे लोगों के साथ रिश्वतखोरी की जाती रहेगी। क्या रिश्वतखोरी का यह पैसा सिर्फ लेखपाल तक सीमित रहता है ? शायद बिल्कुल नहीं। क्योंकि, यदि रिश्वतखोरी का पैसा सिर्फ लेखपालों की जेब तक सीमित रहता तो ऐसे मामलों की शिकायत मिलते ही उनके सीनियर अधिकारियों द्वारा ऐसे लेखपालों के खिलाफ विभागीय, अनुशासनात्क और निलंबन जैसी कार्यवाही अमल में लाई जाती। लेकिन, अमूमन ऐसा हो नहीं रहा है।

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