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‘भारतीय ज्ञान परंपरा और भारतीय भाषाएं’ नामक विषय पर आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ शुभारंभ

“आजकल लोग केवल पालि भाषा आधारित बौद्ध धर्म को प्रामाणिक बौद्ध धर्म मानते हैं लेकिन बौद्ध धर्म की अन्य धाराओं का ज्ञान भी अति आवश्यक है।” - प्रो. कर्म तेज सिंह सराओ

नालन्दा। “विश्व केवल परमाणु विस्फोट या पर्यावरण नुकसान से ही नष्ट नहीं हो सकता अपितु भाषाओं के नुकसान से भी नष्ट हो सकता है।” उपर्युक्त कथन नव नालंदा महाविहार (सम विश्वविद्यालय) के माननीय कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने आज हिंदी विभाग, नव नालंदा महाविहार एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और भारतीय भाषाएं’ नामक विषय पर आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता में कहा। साथ ही उन्होंने कहा कि “बेशक अनुवाद मूल पाठ के क़रीब नहीं हो सकते लेकिन भाषा के विकास और विश्व साहित्य की समझ विकसित करने के लिए यह एक उपयुक्त माध्यम है।”

इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बौद्ध अध्ययन विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. कर्म तेज सिंह सराओ ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि “आजकल लोग केवल पालि भाषा आधारित बौद्ध धर्म को प्रामाणिक बौद्ध धर्म मानते हैं लेकिन बौद्ध धर्म की अन्य धाराओं का ज्ञान भी अति आवश्यक है।” इसके पश्चात् बतौर विशिष्ट अतिथि, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राधे श्याम दुबे ने कहा कि “हमारी उपासना पद्धति चाहे जो भी रही हो लेकिन हम मूलतः एक ही पुरुष की संतान हैं, रामचरितमानस की कोई भी चौपाई ऐसी नहीं है जिसका उत्स वैदिक धर्म ग्रंथों में न हो।” साथ ही हिंदी भाषा की व्यापकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि “आज हिंदी भाषा का भी दमखम उतना ही हो गया है जितना कि अंग्रेजी का है।” तत्पश्चात् संकायाध्यक्ष प्रो. विश्वजीत कुमार ने कहा कि “भाषा संस्कृति और सभ्यता की संवाहिका है।”

इसके पश्चात् मुख्य अतिथि के रूप में नालंदा विश्वविद्यालय, राजगीर के माननीय कुलपति प्रो. अभय कुमार सिंह ने कहा कि “भारतीय संस्कृति का आधार ‘संस्कृत भाषा’ और ‘योग’ है। तथा भारतीय ज्ञान परंपरा के मर्म को समझने के लिए बहुभाषी होना अनिवार्य है।”

इस कार्यक्रम का संचालन बौद्ध अध्ययन विभाग, नव नालंदा महाविहार, नालंदा के आचार्य डॉ. सुरेश कुमार ने किया, उन्होंने कहा कि भाषा और परंपरा एक दूसरे की पूरक हैं। आज का यह सत्र पूर्णतः ज्ञानाच्छादित रहा। ज्ञान और कौशल की धरती नालन्दा में इस कार्यक्रम का शुभारंभ और दूर-दराज से आए लोगों की उपस्थिति सौभाग्य का विषय है।

कार्यक्रम का संयोजन डॉ. अनुराग शर्मा, हिंदी विभाग, नव नालंदा महाविहार ने किया, स्वागत वक्तव्य प्रो. हरे कृष्ण तिवारी, विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, नव नालंदा महाविहार ने दिया तथा प्रो. रूबी कुमारी कुलसचिव, नव नालंदा महाविहार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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