
बिजनौर । 17 अप्रैल 2025 को उत्तर प्रदेश लोक जनजाति संस्कृति संस्थान लखनऊ (संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश) एवं वर्धमान कॉलेज बिजनौर के संयुक्त तत्वावधान में “सृजन” ग्रीष्मकालीन सात दिवसीय चित्रकला कार्यशाला के तृतीय दिवस का आयोजन किया गया |
कार्यशाला के प्रशिक्षक श्री यशवंत जोशी ने“ बुंदेली आर्ट फॉर्म चितेरी” की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि बुंदेली शैली ने आमेर, बांसुरी और जयपुर की शैली के साथ मिलकर मुगल शैली को जन्म दिया और ओरछा से टूट कर अन्य बुंदेली राज्यों और जगीरों की उपशैलियों को जन्म दिया। बुंदेली शैली में भारतीय चित्रकला को विशिष्ट चित्र कहा जाता है जैसे-कटैया, गर्गा, विशाल कटि वस्त्र, मराठी धोती, पाग, साफा, सेला, मांडिल, पुन्रेरी, पागोट, पगड़ी, इंस्टिट्यूटपाली पन्हैया तथा पिसोरी के जूतों लाइनंकन प्रस्तुत किए गए।
इस कार्यशाला में छात्रा;आयुषी,स्वाति,तान्या,कनन,पूजा आर्यन, आरती,अंजलि,गीतिका,कविता रानी, तेजस्वी जैसे कई छात्र-छात्राएं ने बढ़- चढ़कर प्रतिभाग किया। छात्र-छात्राओं के साथ-साथ महाविद्यालय के शिक्षक व शिक्षिकाओं ने भी चित्रकला का प्रशिक्षण लिया ।कार्यशाला का कुशल निर्देशन प्रोफेसर सी. एम. जैन (प्राचार्य), श्री अतुल द्विवेदी (निदेशक उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्थान), श्री शिशिर (निदेशक संस्कृति निदेशालय उत्तर प्रदेश), श्री रविन्द्र कुमार (विशेष सचिव संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश), श्री मुकेश कुमार मेश्राम (प्रमुख सचिव संस्कृति एवं पर्यटन उत्तर प्रदेश) में किया गया ।
कार्यशाला में महाविद्यालय के प्रोफेसर प्रीति खन्ना, प्रोफेसर नीरज कुमार,प्रोफेसर शशिप्रभा प्रोफ़ेसर राजेश कुमार यादव,प्रोफेसर जे.के.विश्वकर्मा,डॉ. मेघना अरोड़ा, डॉ. अंजू बंसल,डॉ. ओ.पी सिंह , डॉ. चेतना शाक्य,डॉ. करन देशवाल, डॉ. अदीब नाज,डॉ. आयुष बघेल,डॉ. आरती,डॉ. प्रतिभा, यश चौहान,डॉ. रजनी शर्मा,डॉ.मोहम्मद साबिर आदि ने प्रतिभागियों व संस्कृतिक समिति के पदाधिकारियों का उत्साहवर्धन किया ।चित्रकला कार्यशाला को सफल बनाने में सांस्कृतिक समिति की समन्वयक डॉ. दुर्गा जैन, डॉ. चारुदत्त आर्य, डॉ.टीना अग्रवाल,डॉ. नीलम गुप्ता, डॉ. रेनू चौहान, डॉ. बबीता चौधरी, डॉ. अंशु चौधरी, और डॉ विनीता पांडे,डॉ.अनामिका आदि का विशेष सहयोग रहा।