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अभिधम्म बौद्ध विद्वत परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है – भिक्षु के. एल. धम्मजोति

नव नालंदा महाविहार में बौद्ध अध्ययन के छात्रों के लिए समकालीन प्रासंगिकता विषय पर व्याख्यान आयोजित।

नालंदा। ११ मार्च २०२५ को पालि विभाग, नव नालंदा महाविहार (सम विश्वविद्यालय, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), नालंदा द्वारा भिक्षु (प्रोफेसर) के. एल. धम्मजोति, अध्यक्ष एवं निदेशक, बुद्ध-धर्म केंद्र, हांगकांग, चीन के विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया ।

कार्यक्रम की शुरुआत भिक्षु (डॉ.) धम्म ज्योति, एसोसिएट प्रोफेसर, पालि विभाग द्वारा बुद्ध वंदना के सस्वर पाठ से हुई, इसके पश्चात संस्कृत विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नरेन्द्र दत्त तिवारी द्वारा वैदिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया गया ।
अतिथि वक्ता भिक्षु के. एल. धम्मजोति का स्वागत माननीय कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह द्वारा किया गया ।

बौद्ध भिक्षु के. एल. धम्मजोति ने अपने व्याख्यान में अभिधम्म को बौद्ध विद्वत परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग बताया, जो मानसिक और भौतिक तत्वों (धर्मों) का व्यवस्थित विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिससे वास्तविकता की प्रकृति एवं मुक्ति के पथ को समझा जा सकता है । उन्होंने इसकी समकालीन प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए चेतना, नैतिकता और मीमांसा के विस्तृत अध्ययन को रेखांकित किया ।उन्होंने यह भी कहा कि अभिधम्म की सुदृढ़ समझ महायान दार्शनिक अवधारणाओं को समझने के लिए आवश्यक है ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने व्याख्यान के विषय चयन की सराहना की और कहा कि अभिधम्म पर गहन चर्चा न केवल बौद्ध अध्ययन के लिए बल्कि आधुनिक विषयों जैसे मनोविज्ञान, मनोरोग, भौतिकी एवं चिकित्सा के लिए भी प्रासंगिक है ।

उन्होंने आंतरिक शांति और विश्व शांति के मध्य संबंध पर जोर देते हुए कहा कि अभिधम्म की गहरी समझ व्यक्ति को आंतरिक शांति की यात्रा पर ले जा सकती है, जिससे वह विश्व शांति में सक्रिय भूमिका निभा सकता है । उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अभिधम्म का अध्ययन केवल प्रारंभिक अभिधम्म ग्रंथों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बाद के बौद्ध साहित्य तक विस्तृत है, जो जीवन की परम वास्तविकता से संबंधित है जो बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों में से एक है ।

इस अवसर पर प्रमुख वक्ताओं में प्रो. विश्वजीत कुमार सिंह, डीन, पालि एवं अन्य भाषाओं के संकायाध्यक्ष एवं पालि विभागाध्यक्ष उपस्थित थे। इस शैक्षणिक संगोष्ठी में बड़ी संख्या में छात्रों, शोधकर्ताओं और शिक्षकों की सक्रिय हो कर भाग लिया।

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